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इस्लाम धर्म का भारत से रिश्ता

मेरा भारत महान
मेरा भारत महान
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आज का ब्लॉग लिखने से पहले मैंने काफी सोच विचार किया, कई बार सोचा की
यह एक संवेदनशील विषय है और मैं एक साधारण आदमी, फिर सोचा की जितनी
भी मालूमात है उसको दुसरो से शेयर करने में कोई हर्ज नहीं है !

शुरुआत करता हू इस्लाम धर्म के पैग़म्बर मोहम्मद साहब के इस कथन से की

“हिंद से मुझे मुहब्बत की खुशबू आती है”

अब अपने को मुसलमान कहने वालो के लिए तो यह शब्द ईमान का दर्जा रखते है.

अब एक और बात, इस्लाम के दुसरे खलीफा हज़रात उमर जिनके दौर में यूरोप वगैरह
मुसलमानों के कब्जे में आये, उन्होंने अपना एक दूत भारत भी भेजा था, उसने वापस आ
कर भारत की इतनी प्रसंशा किया की हज़रत उमर ने भारत में सेना न भेजने का फैसला
किया!

तीसरी और काफी अहम् बात की जब इमाम हुसैन का काफिला कर्बला में था और बेहद
परेशानी और मुसीबत में था उस वक़्त इमाम हुसैन ने जो ३ बाते रक्खी थी, उनमे से
एक थी की मुझे छोड़ दो मैं अपने परिवार के साथ हिंद की तरफ चला जाओ !

यह तीनो बाते ऐसी शख्सियतो से है जिनसे इस्लाम है! इनके शब्द और करनी बताती है कि
इन महापुरुषों के दिल में हिंद (भारत) के लिए क्या जज्बा था !!

इस्लाम कि इन महान हस्तियों के बाद जब बादशाहत का दौर आया तो असल इस्लाम
इन बादशाहों के दिलो से जाता रहा, वास्तव में इस्लाम में बादशाहत है ही नहीं, तो यह
बादशाह कही से भी इस्लामिक दुनिया के स्तम्भ नहीं थे यह सिर्फ बादशाह थे और अगर
आप देखे तो इनके दौर में मुस्लिम धर्म गुरुओ को जो इनकी ग़लत बातो पर आपत्ति करते
थे , बुरी तरह मारे गए, जेल में बंद किये गए, जिसका सब से बड़ी मिसाल तो खुद कर्बला है,
इमाम हुसैन ने यज़ीद कि हुकूमत को नहीं माना क्योंकि एक मुस्लमान होने के बावजूद
उसके अन्दर सब बुराइया थी! यज़ीद शासक था और अपनी हुकूमत के लिए इमाम को
मार डाला !! आज सारी दुनिया क्या हिन्दू क्या मुसलमान सब इमाम हुसैन को याद करते है
और रोते है !!!

अगर हम भारत के बारे में बात करे तो यहाँ जो भी आक्रमण हुए उनमे किसी का आधार
धार्मिक नहीं था, अगर धार्मिक होता को हजरत उमर खुद इसकी शरुआत करते न की वोह
बादशाह जो खुद ही इस्लाम के मूल आधार पर चोट कर के बादशाह बने ! इनके आक्रमण का
आधार या तो लूटपाट करना था या अपने राज्य का विस्तार !

यदि हम मुगलों की बात करे तो ज़रा सोचिए बाबर हिंदुस्तान कैसे आया, क्या वह इस्लाम
का प्रचार करने आया था ? नहीं, बल्कि वोह तो एक हिन्दू शासक के कहने पर एक मुस्लिम
शासक इब्राहीम लोधी से जंग करने आया था और फिर यहाँ हुकूमत कायम कर लिया, उसके
बाद मुग़ल भारतीयता के रंग में रंगते गए और इनका अंत बहादुर शाह ज़फर जैसे एक भारतीय
क्रांतिकारी के रूप में हुआ ! जिसने मरने के बाद भी भारत में दफ़न होना चाहा कही और ‘
नहीं

अब भारत तो जो इस्लाम के प्रचार की बात है तो वह सूफी संतो के ज़रिये फैला है जिसमे
मुख्य रूप से ग़रीब नवाज़ अजमेरी, बाबा फरीद, हजरत निजामुद्दीन आदि है, जो बादशाहों से बहुत
दूर रहते थे, और अगर देखे तो ज्यादा तर बादशाहों ने इनको महान संतो को नुकसान ही पहुचाया
है! “अभी दिल्ली दूर है” यह कहानी तो सभी को मालूम होगी जब दिल्ली का मुस्लिम बादशाह
निजामुद्दीन पर हमला करने आ रहा था!

भारत में इस्लाम तलवार या हुकूमत से नहीं फैला, बल्कि इन सूफी संतो से फैला जिन्हों ने
मुस्लिम और गैर मुस्लिम में कोई फर्क नहीं समझा , उनकी नज़र में सब इंसान थे और बराबर थे,
उनके दर से कल भी सबको फायदा पहुचता था और आज भी उनकी दरगाहे टूटे और दुखी
दिलो का सहारा है !

हमको महापुरुषों और शासको में अंतर समझना चाहिए ! शासक पहले शासक होता है और
उसकी अपनी सत्ता उसको सब से प्यारी होती वोह इसके लिए हजारो पर ज़ुल्म करता है ,
दीन , धरम से उसका मतलब ज्यादा तर अपनी सत्ता बचाने तक ही होता है!!

भारतीय मुसलमानों का आदर्श हजरत उमर / इमाम हुसैन और सूफी संत है जिनकी दरगाहो
पर आज भी मुसलमानों से ज्यादा गैर मुस्लिम जाते है, वह आक्रमणकारी नहीं जिन्हों ने यहाँ
लूट पाट की.

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