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पिछला हफ्ता यह मुद्दा काफी गरम रहा ! दस दिनो में केवल दिल्ली में हुई है इज्जत के
नाम पर पांच हत्याएँ हुई, वास्तव मे यह समाज मे बढ़ते जुनून और संवेदनहीनता का ही
परिणाम है, भारतीय समाज जो अपनी सहनशीलता और सब को अपनाने के लिए जाना जाता
था वही आज सिर्फ गोत्र और जाती के नाम पर हत्याएँ हो रही है ! वैसे अगर हम पिछले
25-30 साल पे नज़र डाले तो देखेगे की भारतीय सहनशील समाज का निरंतर पतन हुआ है,
हमारे देश मे धार्मिक कट्टरता, सामाजिक और जातिगत कट्टरता बढ़ी है, पहले हमने धर्म के
नाम पर खूब मारकाट किया और अपने को बहादुर और ताकतवर साबित करने की कोशिश
की, फिर जब थक गए या दिल भर गया तो जाती के नाम पर विद्रेष फैलाया, जो ज़हर हमने
दूसरो के लिए बूया अब वो ज़हर हमारे अपने घरो मे आ चुका है और हम खुद अपने परिवार
के लिए भी समवेदनहीन हो गए है !
यदि आप समाचारपत्रो को देखे तो करीब करीब रोज़ ही एक दो ऐसी खबरे होती है की दिल
दहल जाता है, कभी 65 साल के बूड़े को पेड़ पे लटका कर पूछताछ की जाती है, कहीं
तरक्की पाने के लिए झूठी मुठभेड़, कहीं गर्भ मे पलते बच्चे को सिर्फ इस लिए की वो
दूसरे धर्म का है, कभी इस लिए की वो कन्या है, या वो बहू है जो दहेज नहीं लायी,
मार दिया जाता है, ऐसा करने वाले (पुलिस , सेना, दंगाई या आम आदमी) सब ही समाज
का ही हिस्सा है, क्या यह ऐसा करने से पहले एक बार भी नहीं सोचते की यह एक जान ले रहे है,
क्या यह ज़ुल्म यह खून वापस इनपर नहीं पलटेगा, क्या यह जिस पर ज़ुल्म कर रहे है वो भी इन
ही की तरह एक इंसान है, नहीं इनको यह सोच कभी नहीं आती क्यो की यह समवेदनहीन हो
चुके है और ताकत के नशे मे चूर !
हमारा युवा वर्ग जो अपना जीवन खुद जीना चाहता है एक हद तक ही उसको रोका जा सकता है
लेकिन अगर उसने परिवार के विरुद विवाह करने की सोच ही लिया है या कर लिया तो क्या आप
उसको मार डालेगे,अगर कोई भी बात आप की मर्ज़ी के खिलाफ जाए तो क्या उसका हल यही है!
क्या बातचीत या सहनशीलता कोई माने नहीं रखती ? बस जो आप कहे जो आप चाहे वही
सही है और दूसरा बाध्य है उसको मानने के किया, अगर वो नहीं मानता तो क्यो की आप
शक्तिशाली है आप उसको मार देंगे ! क्या यही हमारी भारतीय संस्कृति है जिसका हम
दुनिया मे गान करते है ?? नहीं यह हमारी संस्कृति नहीं है !
बहादुरी तो यह है की आप उसको समाज के विरुद जा कर अपना ले और अपने रंग मे ढाल ले,
किसी भी चीज का दमन करना उसको और उभारना ही होता है , भारत मे कट्टरपंथियो ने
जितना भी न्यू इयर या वलेनटैन दिवस का विरोध किया उतना ही यह मशहूर हो रहा है इससे
कही कारगर यह होता की युवाओ के मन मे अपनी संस्कृति का सम्मान पैदा किया जाता और
वो खुद समझते और इससे दूर होते !!
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