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सूफ़ी संत अबुल हसन अली हजवेरी की दरगाह पर विस्फोट करके आतंकवादियो ने साबित कर दिया की उनका मजहब इस्लाम नहीं बल्कि खून खराबा है ! सूफ़ी संत अबुल हसन अली हजवेरी जिनको दाता साहब के नाम से भी जाना जाता है का जन्म अफ़ग़ानिस्तान मे 990 मे हुआ और इंतिकाल 1077 मे लाहोर मे हुआ, यह एक सूफी संत थे जिनका साउथ एशिया मे इस्लाम धर्म के प्रचार मे अहम योगदान है ! जैसा की सभी सूफिओ की दरगाहों पर होता है वैसे वहाँ भी सभी धर्म और जाती के लोग जाते है और इनमे धर्म या जाती की कोई बंदिश नहीं होती है! इनहोने जीवन भर प्यार और अच्छे कर्म करने का संदेश दिया जो वास्तव मे इस्लाम का मूल आधार है !
आज आतंकवादियो ने बता दिया की इनके लिए ऐसे सूफी संत कोई महत्व नहीं रखते और इस्लाम का मूल आधार और स्तंभ का इनके लिए कोई माने नहीं है, यह इस्लाम के मानने वाले नहीं है बल्कि इस्लाम के मानने वालों के दुश्मन है , अरे जिन लोगो ने इस्लाम को फैलाया की आज दुनिया भर मे मुसलमान है, जब यह इन ही के दुश्मन बन गए तो फिर एक आम मुसलमानो के दोस्त या हमदर्द कैसे हो सकते है!
इस्लाम का जो आधार है वो है प्यार और भाईचारा, मोहम्मद साहब के ज़माने मे मदीना मे जो ग़ैर मुस्लिम थे वह मुसलमानो से ज़्यादा आराम से थे उनके ऊपर इस्लाम को थोपा नहीं गया था बल्कि वह खुद धीरे धीरे इस्लाम से प्रभावित हो कर इसमे आए थे, क्या आज इन आतंकवादियो से प्रभावित हो कर कोई इस्लाम कूबूल कर सकता है , कुरान मे साफ है की “दीन मे ज़बरदस्ती नहीं” और “मेरा दीन मेरे लिया और तुम्हारा दीन तुम्हारे लिए” किसी पर कोई जबर नहीं, आज यह लोग किस किताब को मान रहे है, कुरान मे तो कहा गया है की अगर किसी ने नाहक किसी की जान ली ( इसमे धरम नहीं बल्कि किसी मे मनुष्य कीजान चाहे वह जो भी हो ) गोया उसने सारी दुनिया या मानवता की जान ले लिया, अब यह किस किताब की रोशनी मे मे निर्दोष लोगो का कत्ल कर रहे है और ऐसी पाक जगह पर, 47 लोग तो मर गए लेकिन शायद लाखो लोग इस घटना के बाद भावनात्मक रूप से मर गए, कभी सोचा भी नहीं जा सकता था की ऐसे शैतान भी इस धरती पर जनम लेगे! कुरान मे तो लिखा है की वह मुसलमान नहीं जिसका पड़ोसी भूखा हो ( फिर इसमे धर्म की कोई शर्त नहीं ) और वह खाना खाये ! कुरान और मोहम्मद साहब का जीवन ऐसी मिसालों से भरा पड़ा है! इस्लाम मे तो जीव जन्तुओ को भी बग़ैर किसी ज़रूरत मारना माना है फिर इंसान को कैसे मारा जा सकता है ! एक बात और साफ करना ज़रूरी है की इस्लाम मे जो मासाहार की अनुमति है वह मनुष्य के अपने जीवन को बचाने के लिए है सिर्फ तफरीह के लिया यह वाहवाही लूटने के लिए किसी भी जीव की हत्या घोर पाप है !
मोहम्मद साहब ने तो युद्ध मे भी उस व्यक्ति को मारने से मना किया है जो दुश्मन की सेना मे हो लेकिन तुम से लड़ न रहा हो, औरतों , बच्चो को निशाना न बनाओ, हरे पेड़ मत काटो ! उन्होंने तो यह सब युद्ध के मैदान मे दुश्मनो के साथ करने को मना किया, यहाँ तो बेक़ुसूरों को मारा जा रहा है जिन्हे यह आतंकवादी जानते भी नहीं, जो इनसे न तो लड़ रहे है ना ही उनका कोई कुसूर है। इस मे औरतें बच्चे सभी है !
जहाँ तक आत्मघाती हमलो की बात है तो लगभग सारे इस्लामिक विद्वानो ने इसको हराम करार दिया है ,यह आत्महत्या है और ऐसे लोगो का ठिकाना नरक है चाहे जीवन मे जितना पुण्य किया हो! इस तरह के लोग ना तो अल्लाह के न मोहम्मद साहब के और न कुरान के, इन का एक अलग दीन है वह है “कत्ल और ग़ारत और दहशतगर्दी” और इन का मक़सद है इस्लाम और मुसलमानो को ज़्यादा से ज़्यादा नुक्सान और बदनाम करना, यह ही इस्लाम और मुसलमानो के असली दुश्मन है
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