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कर्बला की बस्ती : (भाग 1)

मेरा भारत महान
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कर्बला और इमाम हुसैन यह ऐसे नाम है जिनको शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जो न जानता हो, दुनिया के वजूद मे आने से लेकर अब तक लाखो बस्तिया बसी और उजड़ गयी लेकिन कर्बला की बस्ती जो 2 मुहर्रम 61 हिजरी मे  बसी और 10 मुहर्रम को उजड़ गयी यानि सिर्फ 8 दिनो की थी यह बस्ती  लेकिन इसकी याद आज 1400 साल गुज़र जाने के बावजूद ताज़ा है, इसका एक एक लम्हा हर उस व्यक्ति के दिल मे नक्श है जो सच्चाई और हक़ को मानता है और जिसके दिल मे ज़रा सी भी इंसानियत बाक़ी है !!

 

 इमाम हुसैन का कर्बला जाना अपने किसी ज़ाती फ़ायदे के लिए नहीं था, बल्कि कूफा (इराक) के लोगो ने उनको बुलाया था अपने मार्गदर्शन के लिए!! 

 

इस्लाम मे खिलाफत के धारणा थी जिसका आधार था सेवा, बराबरी और सादगी, इस्लामिक खलीफा चटाई पर बैठ कर खिलाफत करते थे न तो उनके लिए महल होता था न ही तख्तो ताज,न कोई खज़ाना !! याजीद ने इस्लाम के इन बुनियादी उसूलो को दर किनार करते हुए खिलाफत को बादशाहत मे तब्दील कर दिया था,  इस्लाम मे जो हराम था उसको हलाल करने की कवायद शुरू हो चुकी थी, सरकारी खज़ाना अपने फायेदे के लिया इस्तेमाल होने लगा था !!

 

ऐसे हालात मे कुफा ( जो इस्लाम का एक प्रमुख केंद्र था ) मे रहने वालों ने इमाम हुसैन को आवाज़ दी और कहा की अगर आप इस वक़्त हमारे मार्गदर्शन को नहीं आएगे तो कयामत के रोज़ हम कह सकते है की आप बुलाने के बावजूद हमारे मार्गदर्शन को नहीं आए ! इस तरह कुफा वालों ने हजारो खत और दूत भेज कर इमाम हुसैन को बुलाया था ! याजीद जानता था की इमाम हुसैन उसकी ज़ालिम हुकूमत  को कभी स्वीकार नहीं करेगे इस लिए उसने अपने गवर्नर को आदेश दिया था की अगर हुसैन उसके पक्ष मे बाइत (शपथ) नहीं लेते है तो उनको कत्ल कर दिया जाये !! जब इमाम हुसैन को यह पता लगा तो उन्होने मदीना छोड़ दिया, वह नहीं चाहते थे की मदीना जैसी जगह पे खून खराबा हो वह मदीना छोड़ कर मक्का चले गए, फिर जब मक्का मे भी यह अंदेशा हुआ तो कुफा जहा से बार बार उनको बुलाया जा रहा था, जाने का फैसला किया !!

 

2 मुहर्रम 61 हिजरी मे कर्बला मे मुकाम पर इमाम हुसैन के काफिले को जब याजीदी फौज ने घेर लिया तो आप ने अपने साथियो से यही खेमे लगाने को कहा और इस तरह कर्बला की यह बस्ती बसी, इस बस्ती मे इमाम हुसैन के साथ उनका पूरा परिवार और चाहने वाले थे !! हर तरह से इमाम हुसैन पर बाइत के लिए दबाओ डाला जाने लगा, याजीदी फौज उनकी खून की प्यासी थी ,, खेमे के पास बहने वाली फुरात नदी के पानी पर ज़ालिमो ने पहरा लगा दिया था और इमाम हुसैन और उनके साथियो के लिए पानी बंद था, औरतों और बच्चो, यहा तक की 6 महीने के अली असगर के लिए भी पानी बंद कर दिया गया था ! 7 मुहर्रम को खेमे मे जितना पानी था सब खत्म हो गया !!

 

9 मुहर्रम को याजीदी फौज के कमांडर इब्न साद ने अपनी फौज को हुक्म दिया दुश्मनो पर हमला करने के लिए तयार हो जाए फौज का शोर सुन कर इमाम हुसैन बाहर आए और इन का मक़सद जानना चाहा, उधर से जवाब आया की आ तो आप इब्न ज्याद (कुफा का गवर्नर) के हुक्म को मान ले (यानि याजीद की बाइत कर ले) या फिर लड़ाई के लिया और कत्ल होने के लिया तयार हो गए ! इमाम हुसैन ने इन से एक दिन की मोहलत मांगी ! 9 मुहर्रम के रात मे इमाम  हुसैन ने अपने सभी साथियो को एकठ्ठा किया अल्लाह की पाकी और शुक्र अदा करने के बाद फरमाया जिसका सारांश था की “मैं किसी के साथियो को अपने साथियो से ज़्यादा वफादार और बेहतर नहीं समझता और न ही ज़्यादा सिला रहमी (दूसरों के साथ रहम )करने वाला, कल का दिन हमारे और इन दुश्मनो के मुकाबले का है मैं तुम सब को बखुशी इजाज़त देता हूँ की रात के अंधेरे मे यहा से चले जाओ मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं होगी, यह लोग सिर्फ मेरे खून के प्यासे है, मुझे कत्ल करने के बाद फिर किसी और की इनको तलब न होगी” इमाम हुसैन ने अपनी बात पूरी करके चिराग बुझा दिया की किसी को शायद उनके सामने से जाने मे हया आए !!!

क्रमशा….

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