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पिछले दिनो राहुल महाजन और डिंपी का झगड़ा सुर्खियो मे था , 7 महीने भी न बीते थे की सात जन्मो का बंधन टूट गया, वैसे राहुल महाजन के लिए या कोई नयी बात नहीं थी, इससे पहले भी वह श्वेता के साथ सात जन्मो के बंधन को मार पीट के बाद तोड़ चुके है !! यहाँ सबसे बड़ा सवाल उठता है मीडिया की भूमिका को लेकर ,, सर्वप्रथम राहुल महाजन मे ऐसे कौन से गुण थे कि मीडिया के एक वर्ग ने उनको एक आइकॉन या सेलेब्रिटी के तौर पर पेश किया ? यदि राहुल महाजन , प्रमोद महाजन के बेटे ना होते और किसी आम आदमी के पुत्र होते तो शायद उन पर ड्रग्स लेने के जो आरोप है उसमे, पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगाते लगाते उनके जूते घिस गए होते, अब एक ऐसे व्यक्ति मे भला मीडिया को क्या खास बात दिखी कि उसको पहले बिग बॉस मे पेश किया फिर स्वयंवर मे !! जो एक मात्र कारण समझ मे आता है वह यह है कि शायद उनके ज़रिए शो थोड़ा मशहूर हो जाए और टीआरपी ज़्यादा हो गए ! बस इस ही कारण सारी नैतिकता को ताक पर रख कर एक आरोपित को हीरो बना दिया, अब दिन रात भारतीय संस्कृत कि दुहाई देने वाले और महिला मुक्ति के पैरोकार ना तो श्वेता के साथ थे और ना ही डिंपी के साथ, इसके उलट राहुल फिर एक बार सुर्खियो मे है और उम्मीद है फिर किसी शो मे जल्दी ही दिखाई देंगे !!
राहुल महाजन से पहले एक और भारतीय संस्कृति को बदनाम करने वाला शो राखी का स्वयंवर हुआ, भारत मे जहा नारी को शर्म, तयाग कि मूर्ति माना जाता है वहा कि नारी अपना वर (?) चुनने के लिया दसियो आदमियो के साथ हंसी खेली और अंत मे जिसको चुना, चंद दिन भी न बीते थे कि छोड़ दिया !! क्या भारत मे भी पश्चिमी तौर तरीके स्वीकार किए जा सकते है जहाँ कि स्त्री पुरुष सिर्फ शारीरिक रिश्ते रखते है ना कि भावनात्मक, जिनके रिश्ते 7 जनम तो क्या शायद 7 दिन भी मुश्किल से चल पाते है !!
कम से कम अभी भारतीय समाज का इतना पतन तो नहीं हुआ है जितना यह टीवी वाले चाहते है !!
अब यदि आप स्वयंवर के अलावा और धरवाहिकों पे नज़र डाले, शायद ही कोई सिरियल हो जिस से कोई नैतिकता का पाठ मिलता हो, सब से सब सिर्फ परिवार मे साज़िश, काट छाट, विवाहोत्तर संबंधो पर ही आधारित होते है, सिरियल मे सब से सब बेहद अमीर होते है जीवन का सुख साधन होता है, ग़रीबी क्या है पैसा कैसे कमाया जाता है , इससे कोई मतलब नहीं,, आखिर यह धारावाहिक समाज को कौन सी दिशा देना चाहते है !!
वास्तव मे यह समाज को कोई दिशा नहीं बल्कि एक नशा देते है धन का, गर्ल फ्रेंड का, ताकत का, किन्तु यहाँ तक आने के लिए क्या पापड़ बेलने होते है यह नहीं दिखाते ! परिणाम स्वरूप युवा वर्ग इन सब की चाह मे कभी कभी ग़लत राह पकड़ लेते है, कम समय और मेहनत से इस खवाब कि दुनिया को पाना चाहते है और अवसादग्रस्त हो जाते है !!
मेरा अनुरोध है कि निर्माता और इससे जुड़े लोग अपनी ज़िम्मेदारी समझे और ऐसे धारावाहिक भी बनाए जिनको उद्देश सिर्फ पैसा कमाना न हो बल्कि इसके साथ साथ समाज को और बेहतर बनाना हो, युवाओ मे ईमानदारी और मेहनत के बल पर आगे आने की भावना आए, वह सफलता का सही और बेहतर रास्ता चुने !!
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