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आज 7वी मुहर्रम है !! आज से तीसरे दिन यानि 10वी मुहर्रम को इमाम हुसैन अपने 72 साथियो के साथ शहीद कर दिये गए थे !! आज 7 मुहर्रम को इमाम के खेमे मे खाने का सारा समान खत्म हो गया था साथ ही पीने के लिए पानी भी नहीं बचा था !!
अक्सर एक सवाल जेहन मे आता है कि आज 1400 साल बीत जाने के बाद भी इमाम हुसैन की शहादत पर उस ही तरह आँसू क्यो बहाये जाते है और हुसैन का ग़म हर कोई मनाता है , यह ग़म आज तक ज़िंदा क्यो है ? यह ग़म मजहब से जाति से आज़ाद क्यो है ? इस का सिर्फ एक जवाब है कि यह ग़म एक पैगाम है इंसानियत का, एक रास्ता है हक़ पर चलने का, एक जवाब है उन ताकतवर ज़ालिमो के लिए जो ताकत के बल पर सच्चाई को दबाना चाहते है, एक नसीहत है सब्र करने की,, एक मिसाल है सच के लिए कुर्बानियो की,, ग़रज़ यह की कर्बला अपने आप मे एक किताब है, एक रोल मॉडल है इन्सानो की हिदायत के लिए !! किसी शायर ने सही कहा है :
हमारी पालको मे आँसू नहीं चिरागा है
गमे हुसैन को हम रोशनी समझते है
आज जो मुसलमानो के बुरे हालात है उसकी वजह सिर्फ यह है की गमे हुसैन की रोशनी हमारी आंखो, हमारे दिलो से जाती रही अगर हमारी आंखो मे यह रोशनी होती तो किसी तरह का ज़ुल्म और जबर करने से पहले हमारी आंखो मे कर्बला का मंज़र छा जाता, किस तरह का ज़ुल्म 6 माह के अली असगर पर किया गया,, 3 दिन के प्यासे बच्चे को पानी के बदले तीर मारा गया,, अगर कोई इस मंज़र को याद कर लेता तो किसी मासूम बच्ची को मारने मारने की ना सोचते,, किसी का घर उजाड़ने से पहले अगर कोई कर्बला मे सय्यदा जैनाब के दुखो और परेशानियो को सोच लेते तो किसी के भाई की जान न लेते,, अगर सय्यदा रुबाब की हालत सोच लेते (जो कर्बला की घटना के बाद कभी चैन से न रह पायी) तो किसी का सुहाग न उजाड़ता,, अगर सय्यदा सकीना के ग़म को महसूस करता तो किसी को यतीम न करता, मगर अफसोस आज यह सब हो रहा है वह भी दीन के नाम पर !!!!
कर्बला मे इमाम हुसैन ने सारे ज़ुल्म सहे लेकिन वह आखिर तक याजीदी सेना को नसीहत करते रहे , समझाते रहे और अपने साथियो को भी सब्र करने को कहते रहे की शायद कोई सुलह का रास्ता निकल आए,, यह एक नसीहत थी की कितना बड़ा मामला क्यो न हो, हमारी पूरी कोशिश सुलह सफाई की होनी चाहिए ना की खून खराबे की ,, हमने यह नसीहत भी दर किनार कर दी और अपने मसलो का हल बातचीत के बजाए दूसरे तरीको से शुरू कर दिये !! कुल मिलाकर हम मानने वाले तो हुसैन के रहे ( सिर्फ जुबानी ) लेकिन हमारे रंग ढंग सब याजीदियो जैसे हो चुके है,, जिसमे सिर्फ और सिर्फ जिल्लत और रुसवाई है दुनिया मे भी और आखरत मे भी !! इस मुहर्रम मे आइये हम अहद करे की हम इमाम हुसैन के किरदार और उनकी दी हुयी नसीहतों को अपनी ज़िंदगी मे उतारे !! किसी मासूम पर ज़ुल्म / जबर ना करें , सब्र करें और अपने मामलात मे सुलह सफाई और बात चीत का दरवाजा कभी बंद ना करे !! जीत हमेशा सब्र करने वाले की होती है ना की जब्र ( ज़ुल्म ) करने वाले की !!
इस मौके पर अगर हम अपने प्यारे देश भारत से इमाम हुसैन के रिश्ते का हवाला न दे तो कुछ कमी महसूस होगी !! यह बात ज़्यादा तर लोगो को मालूम है की इमाम ने याजीदी फौज से कहा था की हमे छोड़ दो मैं अपने परिवार के साथ हिन्द चला जाऊँ, इसके साथ ही जैसा की रवायतों मे मिलता है की हिन्द से एक ब्राह्मण जिनका नाम रहिब दत्त था इमाम हुसैन की तरफ से याजीदियों से लड़े थे,, तीसरी बात जो मैंने सुनी वह यह की हर साल मुहर्रम के बाद कुछ दिनो तक कर्बला (इराक) मे अजीब सी वीरानी रहती थी एक किसी बुजुर्ग ने बताया की यह वह वक़्त है जब इमाम हुसैन (रूहानी तौर पर) अपने चाहने वालों के पास हिन्द चले जाते है इस ही वजह से यहा पर वह रौनक नहीं रहती है !! हमे नाज़ करना चाहिए अपने देश पर जहा अपनी ज़िंदगी मे इमाम हुसैन ने आने की ख्वाहिश ज़ाहिर की,, रूहानी तौर पर जहा इमाम आते है ,, और जहा के लोग (रहिब दत्त) उनकी और इस्लाम की मदद के लिए अपने मजहब पर रहते हुए आगे आते है !!
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