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हिंदी राष्ट्रभाषा – क्या सिर्फ हिंदी भाषियों के लिए ??

मेरा भारत महान
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मेरा यह लेख पहले जागरण जंक्शन पर प्रकाशित हो चुका है ! 

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कहते है अंग्रेज़ चले गए लेकिन अंग्रेजी छोड़ गए

यह वाक्य एकदम सच है, हिंदी राष्ट्रभाषा होने के बावजूद दूसरी श्रेणी में है! आज़ादी के बाद हिंदी के साथ साथ इंग्लिश को भी सरकारी कामकाज के लिए इस्तेमाल किया जाता था और उद्देश यह था की धीरे धीरे सभी सरकारी कामकाज हिंदी में होने लगेगे, यह प्राविधान केवल १५ वर्षो के लिए था, उसके बाद हिंदी को भारत की एकमात्र सरकारी भाषा होना था  लेकिन ऐसा हुआ नहीं और हिंदी केवल हिंदी भाषियो की ही रह गयी !

 

हिंदी का विरोध सबसे पहले दक्षिण भारत में शुरू हुआ, वास्तव में यह विरोध १९३७ में उस समय शुरू हुआ जब उस वक़्त के मद्रास (उस वक़्त के Madras Presidency ) में हिंदी की शिक्षा को अनिवार्य किया गया ! इस विरोध आन्दोलन का नेतृत्व जस्टिस पार्टी ने किया, परिणाम स्वरूप १९४० में ब्रिटिश सरकार ने यह प्रस्ताव वापस ले लिया और हिंदी की अनिवार्यता ख़त्म को गयी !!

 

आज़ादी के बाद भी ग़ैर हिन्दी राज्यो मे हिन्दी को आधिकारिक भाषा  बनाने को लेकर मतभेद था और वो इंग्लिश मे ही सरकारी कामकाज को जारी रखना चाहते थे!

 

इसके बाद १९६५ में जब संविधान लागू हुए १५ वर्ष हो गए और अब हिंदी को एक मात्र आधिकारिक भाषा होना था, ठीक उस ही दिन 26 जनवरी 1965 को हिन्दी विरोधी आंदोलन के और गति पकड़ लिया, मदुरै मे छात्र भी इस आंदोलन के समर्थन मे आ गए और दंगा फसाद शुरू होगया और काफी जाने गयी, परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने आश्वासन दिया की ग़ैर हिन्दी राज्य जब तक चाहे हिन्दी के साथ साथ इंग्लिश को भी इस्तेमाल कर सकते है!! इसके बाद जा कर शांति स्थापित हुई!!

 

फिर 1986 मे जब राजीव गांधी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अंतर्गत नवोदया विध्यालय योजना लागू किया तो एक बार फिर तमिलनाडु मे डीएमके ने यह कह कर इसका विरोध किया की इस से हिन्दी शिक्षा अनिवार्य हो जायेगी,, 13 नवम्बर को असेंबली मे एक प्रस्ताव पास किया जिसमे संविधान के पारा (XVII) को निरस्त करने और इंग्लिश को संघ के आधिकारिक भाषा बनाने की माँग की गयी !!

 

17 नवम्बर 1986 को डीएमके के अगवाई मे आंदोनल के ज़ोर पकड़ा, आखिरकार राजीव गांधी ने संसद मे आश्वासन दिया की तमिलनाडु मे हिन्दी थोपी नहीं जाएगी!

 

दक्षिण भारत के अलावा वर्तमान मे महाराष्ट्र मे हिन्दी का एक पार्टी के द्वारा विरोध जग ज़ाहिर है! यह सही है की हर एक को अपनी भाषा से लगाओ होता है और यह उस राज्य की वहा के रहने वालों की एक पहचान होती है
लेकिन हमारी पहली पहचान हमारी भारतीयता है, हिंदुस्तान है , हिन्दी है फिर कोई और !! यदि किसी भाषा का विरोध करना ही है तो अंग्रेज़ी का करना चाहिए न की हिन्दी का ।।।

 

वास्तविकता यह है की आज हिन्दी सिर्फ हिन्दी प्रदेशो की भाषा बन कर रह गयी है न की पूरे भारत की । एक भारतीय होने के नाते यह हमारा कर्तव्य है की हम हिन्दी का प्रचार प्रसार करे और लोगो को समझाए की हिन्दी हमारी प्रथम भाषा है जो पूरे देश का प्रतिनिधिंत्व करती है और अन्य भाषाए प्रादेशिक है,  और हिन्दी का किसी भाषा से कोई टकराओ नहीं है !

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